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काव्यानाम् सिर्फ एक काव्यसंग्रह नहीं है. यह एक खोज है अपने आप से रूबरू होने की. काव्यानाम् एक खुशबू है रूह को महकने वाली. काव्यानाम् एक संघर्ष है भाषा को उजागर करने को. काव्यानाम् एक सफ़र है मेरे दस वर्षों के अनुभवों का. क्या आप आना चाहेंगे इस सफ़र पर मेरे साथ
पैगाम तेरी धडकनों में जिसे सुन सकूँ, वो गुनगुनाता पैग़ाम अभी बाकी है शायद चुप ही चले जाएँगे इस महफ़िल से, पर जिंदगी के मैख़ाने से एक जाम अभी बाकी है
मैं जानता हूँ फर्क है चाँद में और मुझमें फिर भी तुझे मुझमें मिलाने की कोशिश नाकाम अभी बाकी है ख्वाब परी को पाने का दिखलाया जिसने उस मुकद्दर से मेरा इंतकाम अभी बाकी है
ज़िदंगी के ऐसे दोराहे पर खड़ा हूँ मैं, मेरे हर रास्ते वीरान अब बाकी है गुज़र चुका है जुनून प्यार का, पर मेरे पलछिन में तेरी वो मुस्कान अभी बाकी है
तेरे ना होने की सोच से सहम जाता था, मुझमें तेरी यादों के निशान अभी बाकी है, मैं तेरा एक हिस्सा बनकर जी लूँगा और तू मेरा पर अपने मिलन को एक नया जहान अभी बाकी है
सफ़र ख़त्म होने को है, पर गुज़रे तेरे साथ वो एक शाम अभी बाकी है धुंधली हो चली हो भले ही साँसे मेरी, पर इन डूबती नब्जों में तेरा नाम अभी बाकी है
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