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Haiku Paheliyaan - Vol. II

Volume: 2
Author: Radhey Shiam
Binding: Paperback
ISBN: 9789388125529
Availability:
Publisher: Cyberwit.net
Pub. Date: 2019
Condition:
Price: $15
 
 

राधेश्याम जी एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | ये मेरा सौभाग्य रहा कि पत्राचार द्वारा मेरा उनसे संपर्क बना रहा | साहित्य की हर विधा पर उन्होंने काम किया है | वे एक कुशल चित्रकार भी थे | यह अत्यंत स्तुत्य है कि उनके सुयोग्य सुपुत्र, श्री रमाकान्त, ने अपने पिता की स्मृति को चिर-स्थाई बनाने के लिए उनकी कृतियों को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया है |

   राधेश्याम जी एक बहुत अच्छे हाइकुकार भी थे | उन्होंने अंग्रेज़ी, हिन्दी और उर्दू भाषाओं में समान अधिकार से हाइकु लिखे हैं | लेकिन उनकी सभी हाइकु रचनाएं अभी प्रकाशित नहीं हो पाईं हैं | यह देखकर आश्चर्य होता है कि उन्होंने लगभग आठ सौ विषयों पर हाइकु पहेलियाँ हिन्दी में लिखी हैं | “हाइकु पहेलियाँ” शीर्षक से ही रमाकान्त जी उन्हें प्रकाशित करवा रहे हैं | इन पहेलियों को उन्होंने सात उप-शीर्षकों में विभक्त किया है – पौराणिक, प्रकृति, मानव, मनोरंजन, श्रृंगार, खाद्य-पदार्थ तथा सांसारिक-पदार्थ | कोई भी अंदाज़ लगा सकता है कि इन विभिन्न विषयों की वस्तुओं पर पहेलियाँ गढ़ना, और वह भी हाइकु कलेवर में, कितना दुरूह कार्य हो सकता है | किन्तु राधेश्याम जी ने इसे बड़े कौशक पूर्वक संपन्न किया है | उदाहरणार्थ देवी देवताओं पर कुछ हाइकु पहेलियाँ देखें –

जन्मा घट से

सिन्धु पीया मुख से

दुति नभ से          (अगस्त्य मुनि)

*

हेतुधर्म के

रूप धरे जग के

भू उतर के           (अवतार)

 

   हाइकु रचनाएं मुख्यत: प्रकृति केन्द्रित मानी गईं हैं | ऐसे में हाइकु पहेलियों में प्रकृति संबंधी हाइकु न हों ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता | आग पर एक हाइकु पहेली देखिए |

हवा पी जियूँ

पानी पीते ही मरूं

उजाला करूं

 

   पुराने ज़माने में किसी भी भोज के अवसर पर आगंतुकों की जमात को पत्तलों पर खाना खिलाया जाता था| पत्तलों पर भी लोग बड़े स्वाद से भोजन करते थे | पत्तल पर एक हाइकु पहेली का आनंद लीजिए –

पात पे पात

स्वाद भरी सौगात

खुश जमात

 

   आलू एक सर्व-प्रिय खाद्य पदार्थ हैं | आलू खाकर डकार लीजिए और सुगंध और स्वाद के लिए इलाइची खाना भी न भूलिए | हाइकु पहेली में आलू और इलाइची की कल्पना किस प्रकार की गई है दृष्टव्य है | -

माटी के अंडे

खाएं पुजारी पण्डे

करके ठन्डे

*

राजा सयाने

काले मोत्ती के दाने

लगे चबाने

 

   क्या आपने अंगडाई के बारे में कभी इस तरह सोचा है?

तन न तोड़े

आई निदिया भी तोड़े

अंग मरोड़े

 

     उदाहरण स्वरूप कितनी ही रचनाएं प्रस्तुत की जा सकती हैं | “हाइकु पहेलियाँ’ संग्रह में राधेश्याम जी की एक से बढकर हाइकु पहेलियाँ हैं | ये पाठकों का मनोरंजन भी करती हैं और बच्चों की बुद्धि को गति भी प्रदान करती हैं | मुझे पूरा विश्वास है कि हाइकु-साहित्य में इस संग्रह का खुले मन से स्वागत किया जाएगा |

--डा. सुरेन्द्र वर्मा

 

Author BIO
Radhey Shiam

Radhey Shiam was born on 14th January, 1922 in a reputed vegetarian Hindu family, in Bareilly Cantonment, U.P. India. He inherited love for literature, Gandhian way of life, universal brotherhood, human religion, love for literature and social service from his parents. He was influenced by Danish saint Mr. Alfred Emanuel Sorensen popularly known as ‘Sunyata’ and American artist-cum-philosopher Mr. E.Brewster both friends to Pt. Jawahar Lal Nehru. Pen and brush continued to enrich his treasure of works, his works in Hindi, Urdu, and English appear in print and online at National and International level. Publications: 'Song of Life' (Bhartiya Vidya Bhawan),  'The Book of Life'(Cyberwit.net) ‘Quotes of Life'(Cyberwit.net),  and ‘Nature and I’(Cyberwit.net)  have been published in English and ‘Haiku Phaeliyaan’ in two volumes and ‘Haiku Ramayan’ (Cyberwit.net) in Hindi. He died at 8:00 p.m. 18th April 2015 after a brief spell of illness.


 
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