राधेश्याम जी एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे | ये मेरा सौभाग्य रहा कि पत्राचार द्वारा मेरा उनसे संपर्क बना रहा | साहित्य की हर विधा पर उन्होंने काम किया है | वे एक कुशल चित्रकार भी थे | यह अत्यंत स्तुत्य है कि उनके सुयोग्य सुपुत्र, श्री रमाकान्त, ने अपने पिता की स्मृति को चिर-स्थाई बनाने के लिए उनकी कृतियों को प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया है |
राधेश्याम जी एक बहुत अच्छे हाइकुकार भी थे | उन्होंने अंग्रेज़ी, हिन्दी और उर्दू भाषाओं में समान अधिकार से हाइकु लिखे हैं | लेकिन उनकी सभी हाइकु रचनाएं अभी प्रकाशित नहीं हो पाईं हैं | यह देखकर आश्चर्य होता है कि उन्होंने लगभग आठ सौ विषयों पर हाइकु पहेलियाँ हिन्दी में लिखी हैं | “हाइकु पहेलियाँ” शीर्षक से ही रमाकान्त जी उन्हें प्रकाशित करवा रहे हैं | इन पहेलियों को उन्होंने सात उप-शीर्षकों में विभक्त किया है – पौराणिक, प्रकृति, मानव, मनोरंजन, श्रृंगार, खाद्य-पदार्थ तथा सांसारिक-पदार्थ | कोई भी अंदाज़ लगा सकता है कि इन विभिन्न विषयों की वस्तुओं पर पहेलियाँ गढ़ना, और वह भी हाइकु कलेवर में, कितना दुरूह कार्य हो सकता है | किन्तु राधेश्याम जी ने इसे बड़े कौशक पूर्वक संपन्न किया है | उदाहरणार्थ देवी देवताओं पर कुछ हाइकु पहेलियाँ देखें –
जन्मा घट से
सिन्धु पीया मुख से
दुति नभ से (अगस्त्य मुनि)
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हेतुधर्म के
रूप धरे जग के
भू उतर के (अवतार)
हाइकु रचनाएं मुख्यत: प्रकृति केन्द्रित मानी गईं हैं | ऐसे में हाइकु पहेलियों में प्रकृति संबंधी हाइकु न हों ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता | आग पर एक हाइकु पहेली देखिए |
हवा पी जियूँ
पानी पीते ही मरूं
उजाला करूं
पुराने ज़माने में किसी भी भोज के अवसर पर आगंतुकों की जमात को पत्तलों पर खाना खिलाया जाता था| पत्तलों पर भी लोग बड़े स्वाद से भोजन करते थे | पत्तल पर एक हाइकु पहेली का आनंद लीजिए –
पात पे पात
स्वाद भरी सौगात
खुश जमात
आलू एक सर्व-प्रिय खाद्य पदार्थ हैं | आलू खाकर डकार लीजिए और सुगंध और स्वाद के लिए इलाइची खाना भी न भूलिए | हाइकु पहेली में आलू और इलाइची की कल्पना किस प्रकार की गई है दृष्टव्य है | -
माटी के अंडे
खाएं पुजारी पण्डे
करके ठन्डे
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राजा सयाने
काले मोत्ती के दाने
लगे चबाने
क्या आपने अंगडाई के बारे में कभी इस तरह सोचा है?
तन न तोड़े
आई निदिया भी तोड़े
अंग मरोड़े
उदाहरण स्वरूप कितनी ही रचनाएं प्रस्तुत की जा सकती हैं | “हाइकु पहेलियाँ’ संग्रह में राधेश्याम जी की एक से बढकर हाइकु पहेलियाँ हैं | ये पाठकों का मनोरंजन भी करती हैं और बच्चों की बुद्धि को गति भी प्रदान करती हैं | मुझे पूरा विश्वास है कि हाइकु-साहित्य में इस संग्रह का खुले मन से स्वागत किया जाएगा |
--डा. सुरेन्द्र वर्मा
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